सोमवार, 5 नवंबर 2012
तहज़ीब
प्यार मे रूठना-मनाना भी, एक तहज़ीब है !
ज़ाहिर इसी से होता, कौन कितना करीब है!!
उस रब की काय्नात का,यही सिलसिला है !
कभी खुशी देता है वो, तो कभी गम मिलाहै!!
रूठने -मनाने का शायद,यही फ़लसफ़ा है !
ज़माने मे कहीं ज़फ़ा ,तो कहीं वफ़ा है !!
कहते है कि यह ज़िन्दगी कितनी अज़ीब है?
क्ल तक जो मानिन्द था,आज वही रकीब है!!
प्यार मे रूठना-मनाना भी, एक तह्ज़ीब है !!!
बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें