बाद जाने के उनके,उनकी हर बात पर रो्ना आया!
बदल गये हालात,बदले हुये हालात पर रोना आया!!
कर लेते है अब ख्वाबो- ख्यालो मे तसव्वुर उनका,
तसव्वुर मे उल्झॆ ज़ज़्बात,ज़ज़्बात पर रोना आया!!
हर वक्त मुस्कुरा कर मि्लते थे,गोया कोई दर्द नही,
न जाने छुपाने को उसने कहाँ-कौन सा कोना पाया!!
क्या फ़र्क पडता गर दर्द का मुझे हमनवा बना लेते,
थी यह सलाहियत उस्की,जहाँ खुद को बौना पाया!!
हमदम न सही,हम सफ़र ही जो मुझको बना लेते,
दोस्ती के काबिल न समझा,ये सोचकर रोना आया!!
बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा,आगरा-२८२००७
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