प्रकृति के इस पावन पर्व को प्रणाम !
मां सरस्वती के साधकों को मेरा सलाम !!
उपवन में पुष्प पल्लवित हो रहे हैं !
भ्रमर का हो रहा है आज गुंजन !
पर tham न जाये पर्यावरण प्रदूषण से यह मुकाम !! प्रकृति के..........
कब तलक हम प्रकृति को यों रोंदते रहेंगे ?
वे भी कब तलक इस अत्याचार को गोंद्ते रहेंगे ?
करो कुछ प्रकृति को परिष्कृत करने का नया आयाम!!प्रकृति के .........
है प्रश्न यह -क्या भावी पीढ़ी को बसंत याद रह पायेगा?
फिर कैसे होंगे पुष्प -पल्लव के कलाम !! प्रकृति के ............
कर रहे भारी मन से ,स्वागत तुम्हारा ऋतुराज- वसंत!
अब न होगा कीट्स,मिल्टन या सुमित्रानंदन पन्त !!
प्रकृति के पुजारी मिट jayenge , mil jayega unko विराम !!
प्रकृति के इस पावन पर्व को प्रणाम !
बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुंज सिकंदरा आगरा 282007
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