बुधवार, 20 जनवरी 2010

बसंत


प्रकृति के इस पावन पर्व को प्रणाम !

मां सरस्वती के साधकों को मेरा सलाम !!

उपवन में पुष्प पल्लवित हो रहे हैं !

भ्रमर का हो रहा है आज गुंजन !

पर tham न जाये पर्यावरण प्रदूषण से यह मुकाम !! प्रकृति के..........

कब तलक हम प्रकृति को यों रोंदते रहेंगे ?

वे भी कब तलक इस अत्याचार को गोंद्ते रहेंगे ?

करो कुछ प्रकृति को परिष्कृत करने का नया आयाम!!प्रकृति के .........

है प्रश्न यह -क्या भावी पीढ़ी को बसंत याद रह पायेगा?

फिर कैसे होंगे पुष्प -पल्लव के कलाम !! प्रकृति के ............

कर रहे भारी मन से ,स्वागत तुम्हारा ऋतुराज- वसंत!

अब न होगा कीट्स,मिल्टन या सुमित्रानंदन पन्त !!

प्रकृति के पुजारी मिट jayenge , mil jayega unko विराम !!

प्रकृति के इस पावन पर्व को प्रणाम !

बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुंज सिकंदरा आगरा 282007



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