मेरे प्यार का पहला, निशान है आगरा !
मुहब्बत और इख्लाक की, शान है आगरा !!
मेरी कर्म्-स्थली ,जिसका निशाँ है आगरा !
विवाह,पुत्र-प्राप्ति मिली,सारा जहाँ है आगरा !!
इस ज़मी पर ही लिये थे, विवाह के फ़ेरे !
अब यही पर सोये हुये है , माँ-बाप मेरे !!
ज़िन्दगी के तीन दशक, हमने यहाँ गुज़ारे है!
दुशमन कोई नही यहाँ, लाखों दोस्त हमारे है!!
यहाँ की आबो-हवा ने, लेखनी को संवारा है!
इसीलिये यह वतन, मुझे जान से प्यारा है !!
बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७
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