मेरे दर्द की अज़ब दास्तान है,
ज़ख्म दिखता ही नही कहाँ है?
मिला है जब से ये दर्द मुझको,
खिला-खिला सा सारा जहाँ है !!
जवानी का जोश है या ज़ुनून,
वर्ना दर्द मे कोई हँसता कहाँ है?
कुछ कहते इसे मेरी दीवानगी,
मै कहता दीवाना सारा जहाँ है!!
बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुंज सिकंदर आगरा 282007
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