कोइ कोकिल सी कूके , कोइ म्हारी प्यारी सुन्दर बुलबुल है !
कैसी मीठी लागे इनके तरकस से निकसी उल्टी सीधी बाणी ?
जैसे जेठ भरी दुपहरिया ,काऊ बाबड़ी को ठंडो -मीठो पाणी !!
जब ठुमक-ठुमक चलें जे, लहरावे इनको घड़ें घेर को घाघरो ,
सिमला सो होय जावे है ,जेठ माह मेऊ जू अपनो आगरो !!
]बिनकी प्रीत करावे शीत ,पर जा तन में आय गयी गरमाई ,
भूल गओ हों सब मै अपनो ,मफलर ,टोपी और नरम रजाई !!
बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुंज सिकंदरा आगरा 282007
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