मै अपने गम मे गाफ़िल ,तू अपनी खुशी मे मुब्तिला !
क्यूं हो अब मिलना,और कब तक चलेगा ये सिलसिला ?
मै दर्द के हर मुकाम से गुज़र गया,
है तुझमे सलाहियत, तो कोई नया दर्द दे !
बेशक हवाओं की नर्मी, नश्तर चुभो रही,
ख्वाहिश फ़िर भी कि, नया मौसम सर्द दे!!
मौहब्ब्त के अह्सास को, कोई नया नाम दो !
कि अब इसमे भी फ़रेब का अह्सास होता है!!
बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७
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