हम तो बुझते दिये है,
अपनी ही रौशनी मे जिये है !
पर उनकी क्या कहे ?
जिन्होने रास्ते खुद तै किये है!! अपनी रौशनी........
राहे गर्दिश मे मिले जो ,
उनकी कया बात,वो खुद पिये है!! अपनी रौशनी........
किसी को चाक सीना क्यो दिखाये?
इसके ज़ख्म हमने खुद सिये है !! अपनी रौशनी........
राहे वफ़ा मे किसी से क्या गिला?
मुडने के फ़ैसले उन्होने खुद लिये है!!अपनी रौशनी........
मेरी बर्बादी पर हँसते है सभी,
सामान-ए-बर्बादी काँधोपर खुद लिये है!!अपनी रौशनी........
बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७
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