शुक्रवार, 4 मई 2012

प्यार करता हूं कितना


प्यार करता हूं कितना तुमको,सबको बता रहा हूं,
नाम लिख समन्दर की रेत पर,फ़िर मिटा रहा हूं!!
हम-उम्र बागों मे सब, जब अमिया चुरा रहे हैं,
उन सख्त-दरख्तों पर ,तेरे लिये चाकू चला रहा हूं!!प्यार करता हूं कितना....
जिन दरो-दीवार मे पैबस्त है,शँह्शाओं की यादें,
उन्ही पत्थरों पर नाम लिख,संगतराशी दिखा रहा हूं!!प्यार करता हूं कितना...
यह संगदिल ज़माना, अब क्यूं रोकता है मुझको?
सदियों से जो होता आया है,वोही रस्मे निभा रहा हूं!!प्यार करता हूं कितना..
क्या कभी किसी ज़माने मे, दिलों मे कैद हो सकी?
मुहब्बत मे वो मुझे सताते है,मै उन्हे सता रहा हूं !!प्यार करता हूं कितना...

बोधिसत्वकस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें