कितना संघर्ष चारों ओर है ?
पता नही साझं कब भोर है !!
सावन यूही सूखा निकल गया ,
भादों मे नाचता अब मोर है!!कितना संघर्ष...
कोयल अब कूकती नही है,
कऊओ का सब तरफ़ ज़ोर है!!कितना संघर्ष....
संसद अब सेवा करती कहाँ?
अब यहाँ गुन्डों का शोर है!!कितना संघर्ष...
बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें