शनिवार, 11 अप्रैल 2009

गांधीजी


अब तो केवल नोटों पर छपते हैं गांधीजी।

कौन कहे और कौन सुने कि राष्ट्रपिता हैं गांधीजी।

समय बीत गया कि शांति दूत हैं गांधीजी।

अहिंसा की बात बेमानी-भूल गए सब गांधीजी।

देश और समाज पर आँसू बहाते गांधीजी।

नाम उन्ही का बदनाम कर रहे गांधीजी।

उपवास रखा था शंतिहेतु,अब हाथ काट रहे हैं एक गांधीजी ।

क्या अगली पीढी को ज्ञान दिखायेंगे यह गांधीजी ?

अब तो शर्म करो ,या डूब marगांधीजी !

.गाँधी को ही बदनाम कर रहे हैं नए-नए यह गांधीजी !!

बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुंज सिकंदरा आगरा282007