अब तो केवल नोटों पर छपते हैं गांधीजी।
कौन कहे और कौन सुने कि राष्ट्रपिता हैं गांधीजी।
समय बीत गया कि शांति दूत हैं गांधीजी।
अहिंसा की बात बेमानी-भूल गए सब गांधीजी।
देश और समाज पर आँसू बहाते गांधीजी।
नाम उन्ही का बदनाम कर रहे गांधीजी।
उपवास रखा था शंतिहेतु,अब हाथ काट रहे हैं एक गांधीजी ।
क्या अगली पीढी को ज्ञान दिखायेंगे यह गांधीजी ?
अब तो शर्म करो ,या डूब marओ गांधीजी !
.गाँधी को ही बदनाम कर रहे हैं नए-नए यह गांधीजी !!
बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुंज सिकंदरा आगरा282007