शनिवार, 14 अगस्त 2010

saanchaa

सांचा
-------बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ . .
नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा
२८२००७
अच्छा है कि भगवान ने ,मानव को एक ही सांचे मै नही ढाला!
वरना सब एक से दीखते,न कोई गोरा होता और,न कोई काला!!
कितने कन्फ़्यूज़ रहते हम, कि यह रामू का भाई है या साला!
कभी मौसी को बुआ कहते, कभी बुआ को कह देते ओ खाला!! अच्छा है कि भगवान.......
पापा-पापा कह्ते चाहे थक जाते,क्योंकि वो तो था उनका साला!
गणेश जी को पवन-पुत्र कह जाते,और यमराज को गोविन्दाआला!! अच्छा है कि भगवान.....
इन्ही गफ़लतों मे दिन कट जाता, रात को सो जाते लगा मुह्ताला!
अच्छा है कि भगवान ने, मानव को एक ही सांचे मे नही ढाला !!