मंगलवार, 28 नवंबर 2017
शुक्रवार, 24 नवंबर 2017
तुम्हे हम ढून्ढ्ते है
तुम्हे हम ढून्ढ्ते है
किसी शायर की रुबाई मे!
है रश्क उनसे हमे
जिन्से मिल्ती हो तुम तन्हाई मे!
है यह आसमा बेशक तुम्हारा
फ़िर क्यू बेसुरा राग शहनाई मे?
हम तुम्हारे इश्क के शैदाई हैं
जान दे देगे तुम्हारी रुसवाई मे!
बोधिसत्व कस्तूरिया ९४१२४४३०९३
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