गुरुवार, 27 अप्रैल 2017

तलाक

तलाक तलाक बन गया खुद ही मज़ाक! शौहर ने दे मेहर-चाँदी ली एक खुब सूरत बाँदी! जो उस्की हवस पूरा करे, और बाल-बच्चे पैदा करे! जब ज़नाब का शौक पूरा, फ़ेंक दी जान लायक घूरा! पर इस नाफ़र्मानी को नही, करेंगी अब महिलाये बर्दाश्त! वो अर्धान्गनी बनेगी उनकी, अंग कट्ने की पीडा यादाश्त! वो बन्के रहेंगी अब गृहणी, ताकि घर रहे उनका रिणी! संविधान से मिला है उनको, बराबरी का माकूल दर्ज़ा! उन्को मिले हक औ हर्ज़ा! धर्म निरपेछ राष्ट्र मे नही शरिया का अब कोई अर्ज़ा! जिस वतन की माटी पले, उसका उतारेगी अब कर्ज़ा! बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा-२८२००७