रविवार, 23 दिसंबर 2012

पुलिस


जब कुछ और नही होता है,
वह अपने महलों मे सोता है!
वो और नही है कोई भाई,
वो अंगेजो का ही तोता है !!
कहते है उस्को पुलिस सभी,
जो दानव का ही पोता है !!
माँ,बहन और बेटी कोई नही,
जब हाथ मे ड्न्डा होताहै !!
जलियाँवाला बाग याद हमे,
इन्डियागॆट  अब रोता है !!
समय बदल गया, नही ये,
प्रजातंत्र मे भी  होता है !!
रॆप-बलात्कार शरीर से नही,
केवल विवेक से होता है !!
आज दिल्ली पुलिस ने किया,
शासन क्यूँ फ़िर सोता है ?
बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा-२८२००७

शुक्रवार, 7 दिसंबर 2012

गुनह्गार,


मेरे बागों की मैना ,बिल्कुल मौन है !
उसका दर्द समझते सब, मेरा कौन है?
चाहती है उडना वो, खुले आकाश मे ,
क्यूं बँधी रहे वो मेरे, प्रेम-पाश मे !
मैने उसे घर दिया था इस आस से,
वो रहे सुरछित,बहेलियों के त्रास से !
मैने दिया उसे निश्चल-निष्काम प्रेम,
तोड दिया उसने ,मेरे अन्तस का फ़्रेम!
है मेरी अभिलाषा वैसे ही गुन्गुनाये,
सदा उन्मुक्त आकाश मे वो चहचाये !
जो चाहे सज़ा दे ,मैं उसका गुनह्गार,
वो सत्य समझे नही,है वो मेरा प्यार!
बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७

सोमवार, 3 दिसंबर 2012

अब कहाँ ?


सांझ को सजने वाली मह्फ़िलें अब कहाँ ?
अपनी धुन मे मद मस्त काफ़िले अब कहाँ ?
हर कोई अपने शगल मे गाफ़िल दीखता है ,
हुनर को भी कोई किसी से नही सीखता है !
है यह नई उम्र और नई फ़सल का फ़ल्सफ़ा,
अपने ही मोबाइल से गाने सुनना तब कहाँ? सांझ को सजने ...
खेल के मैदान मे इक्का-दुक्का ही दीखता है,
बिना ट्यूशन अब कहाँ कोई कुछ सीखता है !
कोचिंग और मय्खानो पर ही भीड दिखती है,
लाइब्रेरी मे बैठ खुद पढने का ट्रेंड अब कहाँ?सांझ को सजने....

बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७