मंगलवार, 16 जून 2009

कुछ शेर

सामान सौ बरस का , पल की ख़बर नहीं!
डरते थे जिनसे ता जिंदगी ,अब उनका भी डर नहीं !!

चलो शाम हो चुकी , अब दूकान बढाते हैं !
क्या लगाया?क्या कमाया?हिसाब अब लगाते हैं!!

किसी अजनबी से क्या शिकवा ?इसलिय इस्तकबाल करते हैं !
जिंदगी भर जिन्होने दी चुभन ,बस उनसे ही हम बबाल करते हैं !!

क्या पता ?किस गली ?जिंदगी की शाम हो जाए !
सबसे रखो दुआ-सलाम ,ताकि बंदगी आम हो जाए !!

हमने तो प्यार में , सारी जिंदगी गुज़ार दी !
उसने तो चंद लम्हों में, सारी भद्रा उतार दी !!

वोह हम प्याला ,हम निवाला ,न सही !
उनका दर्दे -बयां,हम से कमतर भी नही !!

किस किस को ? अपने दर्द का हम सफर बनाते !
जिसको भी बताते ,वो अपने को हमसफ़र बताते !!

इस शाम की स्याही उस सुबह से तो अच्छी है !
कमसे कम ,उनसे आंखे चार तो नहीं होती !!

किस किस गुरबत में , हमने दिन गुजारे हैं?
समझेंगे वो क्या? जिनके आज भी पौवारे हैं !!

अब तो अश्क भी सूखा किए ,काहे का रोना है?
जाने वाला गया ,गाहे-बगाहेका बस रोना है !!
बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुंज सिकंदरा आगरा -282007