शनिवार, 21 दिसंबर 2013

नव वर्ष 2014

जतन चाहे तुम कितने भी करो,
उडान चाहे तुम कितनी भी भरो,
लौट कर  धरा पर ही आना है!
लम्हों का जाना कोई जाना है!
जाने के सत्य से ना तुम डरो !!जतन  चाहे...
अन्तिम श्वास जब तुम पाओगे,
लौट फ़िर नही तुम  आओगे !
कहता हूं परमार्थ कुछ भी करो!! जतन  चाहे...
पकॄति का यह शाश्वत नियम है,
कोंपल फ़ूटने का यही क्रम है !
पकॄति का अनुसरण ही करो!! जतन चाहे.....
है शपथ तुम्हे इस नव वर्ष की,
नये सदभाव की, नये हर्ष की ,
पुरातन मे,कुछ नवरंग भी भरो!!जतन चाहे.....
बोधिसत्व  कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिक्न्दरा आगरा २८२००७