गुरुवार, 2 जनवरी 2014

इन सूनी आँखो

इन सूनी आँखो मे मे अब नींद कहाँ?
जागा रातों को जिसके लिये,मनमीत कहाँ?
रातों की स्याही, उन्हे डराती होगी,
पर डरने वाले नही,हम भयभीत कहाँ?इन सूनी आँखो
जाने क्यों अपनाते है,लोग किसी को,
फ़िर ठुकराते है,पहली सी प्रीत कहाँ? इन सूनी आँखो
इस दुनिया के कोलाहल मे इधर-उधर,
भागे फ़िरते है,जीवन मे संगीत कहाँ?इन सूनी आँखो
बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा -२८२००७