आया आया रमज़ान का, यह जो मुक्द्दस महीना !
रोज़ेदारों पर रहमत खुदा की,डूबे कभी ना सफ़ीना!
पीर -मुरशिद कह गये , कामे तू ऐसा कर जा,
कभी तुझसे तकलीफ़ . किसी और को हो कभीना!!आया आया रमज़ान का..
सज़दे मे उसके जिसका भी, सर कभी झुका हो,
आसान हो गया फ़िर उसका,मुश्किलो मे भीजीना!!आया आया रमज़ान का...
जो है तू सच्चा मुसलमान ,मुसल्सल ईमान रख,
कोई क्या बिगाड लेगा, चाहे हो कितना कमीना !!आया आया रमज़ान का..
अल्लाह् पर जो रखेगा तू ,हर वक्त हर शै एतबार,
वो ही कर देगा ज़िन्दगी को, खूबसूरत नगीना !!आया आया रमज़ान का...
मिलता है रोज़ों का सबब, केवल उसी शख्स को,
जिसने किसी और से, कभी कुछ नही हो छीना!!आया आया रमज़ान का...
बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुज सिकन्दरा आगरा २८२००७